हाल तहसील बिसवां का
1- खसरा बना ₹600 में
2-जीवित अधिवक्ता को मृतक दिखाया फिर टंकड त्रुटि बताकर किया सही
3-अविवादित वरासत का समय तय नहीं
हापुड़ कांड के बाद प्रदेश के सारे अधिवक्ता हड़ताल पर हैं वकीलों को हड़ताली, गैर जिम्मेदार और अराजक बताकर उनकी छवि भी समाज में खूब खराब की जाती है लेकिन वास्तविकता यह है कि वकीलों को अपने मुवक्किलों के लिए रोज भ्रष्टाचारियों और निरंकुश कर्मचारियों, अधिकारियों का सामना करना पड़ता है। इन्हीं भ्रष्टाचारियों और निरंकुश अधिकारियों, कर्मचारियों से कभी-कभी वकीलों की झड़प भी हो जाती है और जब शासन मौन हो जाता है तब हड़ताल के अलावा वकीलों के पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं बचता।
जरा बानगी देखिये कि ग्राम रेउसा के एक बुजुर्ग व्यक्ति परसादी पुत्र दूजी अपने हल्के के लेखपाल के पास आज दिनांक 5-9-23 को खसरा बनवाने गए जहां उनसे लेखपाल ने ₹700 मांगे जबकि खसरे की आधिकारिक कीमत मात्र 15 या ₹20 है। काफी अनुनय विनय के बाद लेखपाल ₹600 पर राजी हुए और ₹600 लेकर खसरा दे दिया।
जब इसकी जानकारी वकीलों को हुई तो कई वकील उप जिलाधिकारी (जो ट्रेनिंग पर बिसवां में तैनात हैं) के पास गए। उपजिलाधिकारी ने पीड़ित का खसरा देखने और पीड़ित से पूरी बात सुनने के बाद लेखपाल को बुलाया लेकिन लेखपाल नहीं आए फिर उपाधिकारी ने बिना किसी आश्वासन के कहा कि आप जाइए हम देखते हैं।
हमने जब स्वयं पूरे मामले का पता लगाया तो पाया कि लेखपाल रेउसा एक मुंशी रखते हैं और वही यह सारे काम देखता है और उसी ने यह खसरा ₹600 लेकर दिया है।
अब प्रश्न यह है कि लेखपाल अपनी तनख्वाह से तो इस मुंशी को पैसे देते नहीं होंगे, इसलिए यह एक शॉर्टकट रास्ता अपनाया गया है कि जितना चाहे लूटो, थोड़ा तुम रखो बाकी हम रखते हैं। दूसरी बात यह है कि रेवेन्यू के महत्वपूर्ण कागजात आखिर एक गैर सरकारी कर्मचारी के पास किसके आदेश से रहते हैं?
दूसरा मामला है बिसवां तहसील में प्रेक्टिस करने वाले युवा अधिवक्ता प्रमोद कुमार श्रीवास्तव का। श्री श्रीवास्तव की पत्नी का असमय देहांत हो गया था तो उन्होंने आश्रित प्रमाण पत्र (उत्तराधिकार प्रमाण पत्र) का आवेदन किया। आश्रित प्रमाण पत्र में उनकी पत्नी के साथ-साथ उनके नाम के भी आगे स्वर्गीय लगाकर अधिवक्ता को भी मृतक घोषित कर दिया गया और उनके पते में जहां निवासी मोहल्ला दुर्गापुरी कॉलोनी लिखा था वहां मोहल्ला कैथी टोला लिख दिया गया, यह मामला माह फरवरी का है।
फिर एडवोकेट प्रमोद ने जब इसकी शिकायत तहसीलदार से की तब उनसे दूसरा आवेदन मांगा गया और फिर दूसरे प्रमाण पत्र में जो सही बना था, में यह भी लिखा गया कि पहले वाले में टंकड त्रुटि हो गई थी।
अब सवाल यह है कि टंकड त्रुटि के कारण स्वर्गीय तो हो सकता है लेकिन दुर्गापुरी कॉलोनी के बजाय मोहल्ला कैथी टोला कैसे लिख गया?
इसमें बाद में मामला यह पता लगा कि श्री श्रीवास्तव से टाइप बाबू के हैंड ने पैसे मांगे थे न मिलने पर उसने परेशान करने की नीयत से उनको मृतक घोषित करके उनका पता गलत कर दिया था।
तीसरा मामला है ग्राम सभा सिरसा का। जहां मृतक सभापति के सगे भाई पग्गू करीब 1 साल से वरासत के लिए दौड़ रहे हैं लेकिन अभी तक उनकी विरासत तय नहीं हो पाई है जबकि यह मामला अभिवादित बताया जाता है।
यह कुछ मामले तो मात्र बानगी भर हैं स्थितियां इससे बहुत ज्यादा बदतर हैं लेकिन सुनने वाला कोई नहीं है। अब तो आलम यह है कि तहसील में तैनात कुछ कर्मचारी यदि जान जाते है कि फलां वकील के रहते वह मुक्कील को मनमाने तरीके से नही लूट पाएंगे तो वह मुवक्किल से कहते है कि तुम अपना वकील बदल दो वरना मुकदमा हार जाओगे।
इस भ्रष्टाचार और मनमाने रवैया का दंश सिर्फ तहसील का आम आदमी और वकील ही नहीं झेल रहे हैं बल्कि इसकी जद में एक पूर्व विधायक और एक पूर्व उपजिलाधिकारी भी आ चुके हैं।
बीते कुछ सालों में एक पूर्व विधायक और पूर्व जिलाधिकारी अनुपम मिश्रा के खिलाफ भी तहसील के कर्मचारी धरने पर बैठकर हड़ताल कर चुके हैं।
हालांकि ऐसा नहीं है कि तहसील बिसवां के सभी अधिकारी, कर्मचारी बेलगाम और भ्रष्टाचारी है बल्कि इनमें से कुछ तो बहुत ईमानदार और सुलझे हुए है लेकिन इन्ही में से कुछ बड़े भ्रष्टाचारी और निरंकुश भी हो चुके हैं लेकिन अफसोस इस बात का है कि जब ऐसे भ्रष्टाचारियों और निरंकुश लोगों की शिकायत होती है तो न शासन सुनता है न अधिकारी ही सुनते है और यही लोग बड़े विवाद का कारण बनते है लेकिन बदनाम सिर्फ वकील होते है।
आनन्द मेहरोत्रा एडवोकेट
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