शेख हसीना ने देश छोड़ा लेकिन हिंसा जारी

पड़ोस में उथल पुथल पार्ट --2
  शेख हसीना ने देश छोड़ा लेकिन हिंसा जारी
    क्या बांग्लादेश के तख्तापलट में अमेरिका, पाकिस्तान और चीन की बड़ी भूमिका है?

         यह सभी लोग जानते हैं कि पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी ,"आई एस आई" और दूसरे देशों में तख्तापलट कराने में माहिर अमेरिका की खुफिया एजेंसी "सी आई ए" का बहुत पुराना गठजोड़ है। 80- 90 के दशक में भारत में "खालिस्तान आंदोलन" को भड़काने और हवा देने में इन दोनों खुफिया एजेंसियों का ही सबसे बड़ा हाथ था।
         बांग्लादेश के हालिया घटनाक्रम में एक बार फिर इन दोनो एजेंसियों के तार जुड़ते दिख रहे हैं।
      बांग्लादेश के घटनाक्रम को गौर से देखें तो पाएंगे कि वहां आरक्षण के विरोध में छात्र आंदोलन शुरू हुआ था। (सन 1971 की लड़ाई में जब बांग्लादेश बना था उस समय जिन लोगों ने बांग्लादेश को बनवाने में मुख्य भूमिका निभाई थी उनको ,"मुक्ति योद्धा" कहा जाता है और इन्हीं मुक्ति योद्धाओं  के परिवारों को पिछले पांच दशक से सरकारी नौकरियों में 30% आरक्षण दिया जा रहा था इसी 30% आरक्षण को खत्म करने के लिए छात्र आंदोलन शुरू हुआ था)। 
        बांग्लादेश में बिगड़ते हालात को  देखते हुए और आरक्षण की समीक्षा करने के बाद वहां के सुप्रीम कोर्ट ने इस आरक्षण को मात्र 2% कर दिया था। दो प्रतिशत आरक्षण होने के बाद कायदे से छात्रों का आंदोलन समाप्त हो जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
       धीरे-धीरे यह आरक्षण आंदोलन "शेख हसीना को सत्ता से हटाओ आंदोलन में तब्दील हो गया"। शेख हसीना ने पद से इस्तीफा दे दिया और भारत आ गई फिर यही आंदोलन वहां के अल्पसंख्यकों खासतौर से हिंदुओं और हिंदू मंदिरों पर हमले करने लगा।
            मतलब साफ है कि इस छात्र आंदोलन का मतलब आरक्षण समाप्त करना था ही नहीं। अगर ऐसा होता तो सुप्रीम कोर्ट के दो प्रतिशत आरक्षण करने के बाद यह आंदोलन समाप्त हो जाना चाहिए था।
        दरअसल इस आंदोलन को खड़ा करने के पीछे तीन देश पाकिस्तान, चीन तथा अमेरिका माने जा रहे हैं। जिसमे तीनो के मकसद अलग अलग हैं।
       शेख हसीना ने साफ साफ कहा है कि अगर हम एक "व्हाइट मैन" की बात मान लेते तो ऐसा नहीं होता।
      व्हाइट मैन मतलब अमेरिका। अमेरिका यह चाहता था कि बांग्लादेश के एक दीप पर उसे एक सैन्य अड्डा बनाने की अनुमति मिल जाए जिसे देने से शेख हसीना ने साफ मना कर दिया था। इसलिए शेख हसीना अमेरिका के आंख की किरकरी बनी हुई थी।
       दूसरी तरफ बांग्लादेश बनने के बाद से ही पाकिस्तान उस पर अपना नियंत्रण चाहता था और उसे अपनी कठपुतली के तौर पर अफगानिस्तान की तरह इस्तेमाल करना चाहता था क्योंकि बांग्लादेश की 4000 किमी लंबी सीमा भारत से लगती है पाकिस्तान बांग्लादेश का इस्तेमाल करके भारत को अस्थिर करना चाहता था लेकिन शेख हसीना के रहते पाकिस्तान अपने मंसूबे पूरे नहीं कर पा रहा था।
      जबकि चीन चाहता था कि पाकिस्तान की तरह बांग्लादेश भी चीन की तरफ एकतरफा झुकाव रखे लेकिन शेख हसीना भारत और चीन के बीच संतुलन बना के चल रही थी और वह पाकिस्तान की तरह चीन की साम्राज्य विस्तार की नीतियों के चंगुल में नहीं फंस रही थी।
     इन्हीं तीनों देशों ने पीछे से बांग्लादेश की मुख्य विपक्षी पार्टी "बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी" की प्रमुख खालिदा जिया और पाकिस्तान का मोहरा संगठन "जमात ए इस्लामी" से मिलकर एक छात्र आंदोलन शुरू किया। 
        इसी आंदोलन की आंधी में इन तीनों देशों अमेरिका, पाकिस्तान और चीन के मंसूबे भी आधे अधूरे सफल होते दिख रहे हैं।
         इसमें एक प्रश्न यह भी है कि पड़ोस में जब यह षड्यंत्र और कुचक्र रचा जा रहा था तो भारतीय खुफिया एजेंसी क्या कर रही थी? क्या भारतीय खुफिया एजेंसियां इस षड्यंत्र को समझने में समय रहते असफल रहीं? या जानकारी होने के बाद भी भारत सरकार पड़ोस में हुई इस उथल-पुथल को रोक न पाई?
           मुझे बड़े खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि हमारा पड़ोसी नेपाल भी इस समय चीन की गोद में खेल रहा है और अगर बांग्लादेश भी पाकिस्तान की गोद में खेलने लगा तो भारत के सामने पड़ोसियों से बहुत कठिन चुनौतियां मिलने लगेंगी जो देश के भविष्य के लिए ठीक न होंगी।
 आनन्द मेहरोत्रा एडवोकेट

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ