370 समाप्त लेकिन आतंकवाद जारी


          2019 में आज ही की तारीख में कश्मीर से धारा 370 और आर्टिकल 35a समाप्त कर कश्मीर को 2 केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया था।  2 अगस्त 2023 से सुप्रीम कोर्ट 370 जैसे अस्थाई प्रावधान की समाप्ति को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई भी कर रहा है।
           लेकिन ताजा मनहूस खबर यह है कि कल शुक्रवार रात कश्मीर के कुलग्राम जिले के हलान जंगल में आतंकवादियों ने सेना के कैंप पर हमला कर दिया और 3 सैनिकों को गंभीर रूप से घायल कर दिया। मिलिट्री हॉस्पिटल में इलाज के दौरान "इन तीनों सेना के जवानों ने वीरगति प्राप्त कर ली"।
          कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को कश्मीर का भारत में विलय किया था और इसी के साथ ही पाकिस्तान समर्थित कबायलियों ने जिसमे पाकिस्तानी सेना भी शामिल थी, ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया था। यह युद्ध तकरीबन 14 माह चला था जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की भारी भूल के कारण भारत को कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा खोना पड़ा जो आज भी पाकिस्तान के कब्जे में है जिसे "गुलाम कश्मीर" कहते है।
            कश्मीर के मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान ने दो सीमित और दो पूर्ण यानी कुल चार युद्ध 1947, 65, 71 और 99 में लड़े। 
         जिसमें 71 के युद्ध में पाकिस्तान को इसकी भारी कीमत भी चुकानी पड़ी।  71 में सशक्त प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के राजनीतिक नेतृत्व में न सिर्फ पाकिस्तान के टुकड़े होकर  बांग्लादेश बना बल्कि पाकिस्तान की 93000 फौज को भारत के सामने बिना शर्त आत्मसमर्पण भी करना पड़ा था।
            लेकिन कश्मीर में आतंकवाद का दौर 90 के दशक से शुरू  हुआ जो कभी कम तो कभी ज्यादा होते हुए आज भी जारी है। इन बीते 33 सालों में हजारों भारतीयों जिसमे सेना और आम नागरिक शामिल है, की मौत हो चुकी है और लाखों लोग बेघर हो चुके है।
           बीते इन 33 सालों में भारत में लगभग सभी दलों की सरकारें रही लेकिन किसी भी सरकार ने कश्मीर के आतंकवाद के स्थाई समाधान के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं किए और सरकारें सिर्फ आंकड़ों में आतंकवाद समाप्त करती रही, यही काम  वर्तमान मोदी सरकार भी कर रही है।
             सभी राजनीतिक दल कश्मीर के आतंकवाद को सिर्फ आतंकवाद ही कहते हैं जबकि वहां "धार्मिक आतंकवाद" है और पाकिस्तान इसको छदम युद्ध के रूप में भारत के विरुद्ध चला रहा है लेकिन "धार्मिक" शब्द कहने की कोई भी राजनीतिक दल हिम्मत नहीं जुटाता है कारण कुछ भी हो।
            सरकारें जिस लचर और बिना योजना के कश्मीर के आतंकवाद से निपट रही है उससे यह कभी न समाप्त होने वाला एक छदम युद्ध कायम रहेगा और हमारे सैनिकों की शहादत और आम नागरिकों की मौतें होती रहेंगी।
            हम एक बात फिर दोहराएंगे कि पाकिस्तान समर्थित इस धार्मिक आतंकवाद से निपटने के सिर्फ तीन तरीके हैं।
        पहला है कि कश्मीर के आतंकवाद प्रभावित करीब 5 जिलों में बड़ी सैनिक कार्यवाही की जाए जैसी म्यांमार में रोहिंग्या के खिलाफ की गई थी। इस कार्रवाई में बहुत बड़ा खून खराब होगा लेकिन यह रोज-रोज की मुठभेड़ें समाप्त हो जायँगी परंतु दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के नाते हम ऐसा नहीं कर पाएंगे।
           दूसरा है पाकिस्तान के कई टुकड़े करना। जिससे टुकड़ों में बंट चुका पाकिस्तान आतंकवादियों को रसद न सप्लाई कर सके और ट्रेनिंग, पैसे, सुरक्षित पनाहगार तथा हथियारों की सप्लाई के अभाव में यह आतंकवाद दम तोड़ दे लेकिन यह भी हमारे राजनीतिज्ञों के बस की बात नहीं लगती है। 
      तीसरा है धर्म विशेष के जमावड़े को समाप्त करना। सरकार चाहे तो आतंकवाद प्रभावित मुख्य जिलों की धार्मिक आबादी को उठाकर कुछ इधर, कुछ उधर पूरे देश में शिफ्ट कर दे और इस विशेष धार्मिक आबादी की खाली हुई जगह पर तिरंगे के प्रति वफादार या पूर्व सैनिकों को बसा दे। धर्म विशेष का जमावड़ा समाप्त होने से आतंकवाद स्वतः समाप्त हो जाएगा।
        जैसा कि चीन ने अपने यहां शिंगझियांग प्रांत में किया है। चीन ने इस प्रांत के हुई और उइगर मुसलमान की 70% आबादी को उठाकर पूरे चीन में बसा दिया और इस 70% की जगह चीनी लोगों को वहां बस दिया।
         भारत सरकार के लिए कश्मीर के धार्मिक आतंकवाद को हमेशा के लिए समाप्त करने का यह तीसरा विकल्प सबसे आसान रास्ता है और भारत सरकार इसको करने में सक्षम भी है लेकिन यह काम वही सरकार कर सकती है जो आतंकवाद समाप्त करना चाहती हो।
    आनन्द मेहरोत्रा एडवोकेट

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